जिस दिन मेरा ग्रहप्रवेश हुआ
तेरे मन में भ्रम प्रवेश हुआ
सोच लिया तूने की अब
बट जाएगा सबका प्यार
क्योंकि तूने तो था माना
बस खुद को ही हक़दार
मान लिया तूने मुझे दुश्मन
क्योंकि मुझे भी अब प्यार मिला
पर जिसकी मैं हक़दार थी
तूझसे कभी न वो व्यवहार मिला
क्यों तूने अपनी ऐसी सोच बनाई
क्यों तूने इतनी दूरिया थी बढ़ाई
समझ नही कोई भी पाया
यह भ्रम क्यों था आया
क्या तूझे प्यार देना ही गलती थी
क्योंकि तूझमे न सहनशक्ति थी
पर इसमें उसका क्या कसूर था
जिसका यहा नया नया दस्तूर था
फ़र्ज़ तो रिश्तो में सबका ही होता है
छोटा-छोटा और बड़ा-बड़ा होता है
फिर क्यों तूने अपना फर्ज भुला दिया
इतने लोगो के प्यार का क्या यही सिला दिया
अब नही रही कोई बातचीत की उम्मीद
तू ऐसा चाँद है जिसकी नही कभी आएगी ईद
© नेहा जैन
Copyright © by Neha Jain All rights reserved. The poetries or any portion thereof may not be reproduced or used in any manner whatsoever without the express written permission of the author.
Friday 17 April 2020
Wednesday 8 April 2020
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